तम गुण

सांख्य दर्शन में सत्त्व, रज और तम- ये तीन गुण बताये गये हैं। इनमें रजस् मध्यम स्वभाव है, जिसके प्रधान होने पर व्यक्ति यथार्थ जानता तो है पर लौकिक सुखों की इच्छा के कारण उपयुक्त समय उपयुक्त कार्य नहीं कर पाता है। गीता में कृष्ण ने अर्जुन को स्पष्ट रूप से इस गुण का वर्णन किया है-

  • कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! सब देहाभिमानियों को मोहित करने वाले[1] तमोगुण को तो अज्ञान से उत्पन्न जान।[2] वह इस जीवात्माओं को प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा बांधता है।[3]
  • हे अर्जुन! तमोगुण के बढ़ने पर अन्तःकरण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृति और प्रमाद अर्थात व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्तःकरण की मोहिनी वृत्तियां- ये सब ही उत्पन्न होते हैं।[4][5]


टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. अन्तःकरण और इन्द्रियों में ज्ञानशक्ति का अभाव करके उनमें मोह उत्पन्न कर देना ही तमोगुण का सब देहाभिमानियों को मोहित करना है।
  2. इस अध्याय के सत्रहवें श्लोक में तो अज्ञान की उत्पत्ति तमोगुण से बतलायी है। और यहाँ तमोगुण को अज्ञान से उत्पन्न बतलाया गया- इसका अभिप्राय यह है कि तमोगुण से अज्ञान बढ़ता है और अज्ञान से तमोगुण बढ़ता है। इन दोनों में भी बीज और वृक्ष की भाँति अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है, अज्ञान बीज स्थानीय है और तमोगुण वृक्ष स्थानीय है।
  3. अन्तःकरण और इन्द्रियों व्यर्थ चेष्टा का एवं शास्त्रविहित कर्तव्य पालन में अवहेलना का नाम ‘प्रमाद’ है। कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृतिरूप निरूघमता का नाम ‘आलस्य’ है। तन्द्रा स्वप्न और सुषुप्ति- इन सब का नाम ‘निद्रा’ है। इन सब के द्वारा जो तमोगुण का इस जीवात्मा को मुक्त के साधन से संचित रखकर जन्म-मृत्यु रूप संसार में फँसाये रखना है- यही उसका प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा जीवात्मा बांधना है।
  4. मनुष्य इन्द्रिय और अन्तःकरण में दीप्ति का अभाव हो जाना ही ‘अप्रकाश’ का उत्पन्न होना हैं। कोई भी कर्म अच्छा नहीं लगता, केवल पड़े रहकर ही समय बिताने की इच्छा होना, यह ‘अप्रवृति’ का उत्पन्न होना है। शरीर और इन्द्रियों द्वारा व्यर्थ चेष्टा करते रहना और कर्तव्यकर्म में अवहेलना करना, यह ‘प्रमाद’ का उत्पन्न होना है। मन का मोहित हो जाना किसी बात की स्मृति न रहना तन्द्रा, स्वप्न या सुषुप्ति-अवस्था का प्राप्त हो जाना विवेक शक्ति का अभाव हो जाना किसी विषय को समझने की शक्ति का न रहना- यही सब ‘मोह’ का उत्पन्न होना है। ये सब लक्षण तमोगुण की वृद्धि के समय उत्पन्न होते है, अतएव इनमें से कोई सा भी लक्षण अपने में देखा जाये, तब मनुष्य को समझना चाहिये कि तमोगुण बढ़ा हुआ है।
  5. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 38 श्लोक 10-16

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