तब हौं नगर अजोध्या जैहौं -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू
राम-प्रतिज्ञा


 
तब हौं नगर अजोध्या जैहौं।
एक बात सुनि निस्चय मेरी, राज्य विभीषन दैहौं।
कपि-दल जोरि और सब सैना, सागर सेतु बँधैहौं।
काटि दसौ सिर, बोस भुजा तब दसरथ-सुत जु कहैहौं।
छिन इक माहिं लंक गढ़ तोरौं, कंचन-कोट ढहैहौं।
सूरदास प्रभु कहत विभीषन, रिपु हति सीता लैहौं॥113॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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