तब हौं नगर अजोध्या जैहौं।
एक बात सुनि निस्चय मेरी, राज्य विभीषन दैहौं।
कपि-दल जोरि और सब सैना, सागर सेतु बँधैहौं।
काटि दसौ सिर, बोस भुजा तब दसरथ-सुत जु कहैहौं।
छिन इक माहिं लंक गढ़ तोरौं, कंचन-कोट ढहैहौं।
सूरदास प्रभु कहत विभीषन, रिपु हति सीता लैहौं॥113॥