तब नागरि जिय गर्ब बढ़ायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूही


तब नागरि जिय गर्ब बढ़ायौ।
मो समान तिय और नहीं कोउ, गिरिधर मैं हो बस करि पायौ।।
जोइ-जोइ कहति करत पिय सोइ-सोइ मेरैं ही हित रास उपायौ।
सुंदर, चतुर और नहिं मोसी, देह धरे कौ भाव जनायौ।।
कबहुँक बैठि जाति हरि-कर धरि, कबहुँ कहति मैं अति स्रम पायौ।
सूर स्याम गहि कंठ रही तिय, कंध चढ़ौं यह बचन सुनायौ।।1100।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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