तब तै इन सबहिनि सचु पायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


तब तै इन सबहिनि सचु पायौ।
जब तै हरि संदेस तुम्हारौ, सुनत ताँवरौ आयौ।।
फूले ब्याल दुरे ते प्रगटे, पवन ऐट भरि खायौ।
खोले मृगनि चौक चरननि के, हुतौ जु जिय बिसरायौ।।
ऊँचे बैठि विहंम सभा मैं, सुक बनराइ कहायौ।
किलकि किलकि कुल सहित आपनै, कोकिल मंगल गायौ।।
निकसि कंदराहू तै केहरि, पूँछ मुड़ पर ल्यायौ।
गहबर तै गजराज आइकै, अंगहिं गर्व बढ़ायौ।।
अब जनि गहरु करहु हो मोहन, जौ चाहत हौ ज्यायौ।
‘सूर’ बहुरि ह्वै है राधा कौ, सब बैरनि कौ भायौ।।4141।।

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