तब तुम मेरै काहे कौ आए।
मथुरा क्यौ न रहे जदुनंदन, जौ पै कान्ह देवकी जाए।।
दूध, दही काहे कौ चोरयौ, काहे कौ वन वच्छ चराए।
अघ अरिष्ट, काली फनि काढ़यौ, बिष जल तै सब सखा जिवाए।।
पय पीवत हरे प्रान पूतना, सदा किए जसुमति के भाए।
‘सूरदास’ लोगनि के भुरए, काहै कान्ह, अब होत पराए।।4084।।