तब काहे कौ भए उपकारी -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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तब काहे कौ भए उपकारी लिखिलिखि पठवत चीठी।
आपुन जाइ मधुपुरी छाए, हमकौ जोग बसीठी।।
डाढे ऊपर लोन लगावत, हग जु भई मति हीठी।
'सूरदास' प्रभु बिकल बिरहिनी, जरि बरि भई अँगीठी।। 138 ।।

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