तब अक्रूर कहत नृप आगै, धन्य धन्य नारद मुनि ज्ञानी।
बड़े सत्रु ब्रज मै दोउ हमको, सुनहु देव नीकी चित आनी।।
महाराज तुम सरि को ऐसौ, जाकी जग यह चलति कहानी।
जब नहि बचै क्रोध नृप कीन्हौ, जैहै छनकि तवा ज्यौ पानी।।
यह सुनि हर्ष भयौ गरबानौ, जबहि कही अकूर सयानी।
काल्हि बुलाइ 'सूर' दोउ मारौ, बार बार भाषत यह बानी।।2932।।