तजौ नंद-लाल अति निठुरई गहि, रहे कहा पुनि कहत धर्म हमकौं।।
एक ही ढंग रहे, बचन सब कटु रहे, बृथा जुवतिनि दहे, मेटि प्रन कौं।।
विमुख तुम तैं रहैं, तिनहिं हम क्यौं गहैं, तहाँ कह लहैं, दुख दहैं भारी।।
कहा सुत-पति, कहा मातु-पितु, कुल कहा, कहा संसार बिनु बन-बिहारी।।
हमहिं समुझाइ यह कहौ मूरख नारि, कहौ तुम कहा नहिं मर्मं जानैं।।
सुनहु प्रभु सूर तुम भले की वै भले, सत्यक करि कहौ हम अबहिं मानै।।1027।।