(अरी यह) ढीठ कन्हाई बोलि न जानै, बरबस झगरौ ठानै।
जोइ भावत सोई कहि डारत, अति निधरक अनुमानै।।
अंग-अंग के दान लेत, नहिं घर के कौं पहिचानै।
हम दधि बेचन जाति हैं मारग, रोकि रहत नहिं मानै।।
ऐसी बात सम्हारि कहौ, हरि, हम तुमकौं पहिचानै।
सूर स्याम जो हमसो माँगत, और तियनि सो बानै।।1476।।