डसी री स्याम भुअंगम कारे।
मोहन-मुख-मुसुकयानि मनहुँ, बिष, जात मैर सौं मारे।।
फुरै न मंत्र, जंत्र, गद नाहीं, चले गुनी गन डारे।
प्रेम प्रीति बिष हिरदै लाग्यौ, डारत है तनु जारे।।
निर्बिष होत नहीं कैसेहूँ, बहुत गुनी पचि हारे।
सूर स्याम गारुड़ी बिना को, जो सिर गाढ़ उतारे?।।747।।