ठाढ़े ह्वै एक पाइ रहत तनु त्रिभंग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


ठाढ़े ह्वै एक पाइ रहत तनु त्रिभंग, करत भरत नाद, मुरली सुनि, वस्य पुहुमि सारी।।
थावर चर, चर थावर, जंगम जड़, जड़ जंगम, सरिता उलटै प्रबाह, पवन थकित भारी।
सुनि सुनि मुनि थकित तान, स्वेद गए ह्वै पषान, तरु डोंगर धावत खग-मृगनि सुधि बिसारी।।
उकठे तरु भए पात, पाथर पर कमल जात, आरज पथ तज्यौ नात ब्याकुल नर-नारी।
रीझे प्रभु सूर स्याम, बंसी-रव सुखद धाम, बासरहू जाम नहीं जाति कतहुँ टारी।।1248।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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