ठाढ़ी देखी नंददुवारै हौ सुंदरि इक दह्यौ लिये।
बढ़ी प्रीति ललना गिरिधर सो, गुरुजन सबहिनि बिसरि दिये।।
नैननि कज्जल नासिका बेसरि, मुख तमोर अति राजै।
ढार सुढार बन्यो जाकौ मोती, रहत अधर मुख छाजै।।
कटि लहँगा पहुँचीबँध अँगिया, फुंदना बहु बिधि सोहै।
रतन जराव जरी जाकी जेहरि, हँस चाल गज मोहै।।
कंचनकलस भराइ जमुनजल, मोतियनि चौक पुराए।
मानहु छोना हँसनि के से, चुगन सरोवर आए।।
तुम तौ कहावत ही नँदनंदन, सारँग बूझिहै थोरी।
'सूरदास' प्रभु नदलाल की बनी छबीली जोरी।। 122 ।।