ठाढ़ी कृष्‍न-कृष्‍न यौं बोलै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिहागरौ




ठाढ़ी कृष्‍न-कृष्‍न यौं बोलै।
जैसैं कोऊ बिपति परै तै दूरि धरयौ धन खोलै।
पकरयौ चीर दुष्‍ट दुस्‍सासन, बिलख बदन भइ डोलै।
जैसै राहु नीच ढिग आऐं, चंद्र किरन झकझोलै।
जाकैं मति नंदनंदन से, ढकि लइ पीत पटोलै।
सूरदास ताकौं डर काको, हरि गिरिधर कै ओलैं।।256।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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