झूठे ही लगि जनम गँवायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            

झूठे ही लगि जनम गँवायौ।
भूल्‍यौ कहा स्‍वप्‍न के सुख मैं हरि सौं चित न लगायौ।
कबहूँक बेठ्यौ रहसि-रहसि कै, ढोटा गोद खिलायौ।
कबहूँक फलि सभा मैं बैठ्यौ, मूँछनि ताव दिखायौ।
टेढी चाल, पाग सिर टेढ़ी, टेढ़ैं टेढ़ैं धायौ।
सूरदास प्रभु क्‍यौं नहि चेतत, जब लगि काल न आयौ।।301।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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