झूठे ही लगि जनम गँवायौ।
भूल्यौ कहा स्वप्न के सुख मैं हरि सौं चित न लगायौ।
कबहूँक बेठ्यौ रहसि-रहसि कै, ढोटा गोद खिलायौ।
कबहूँक फलि सभा मैं बैठ्यौ, मूँछनि ताव दिखायौ।
टेढी चाल, पाग सिर टेढ़ी, टेढ़ैं टेढ़ैं धायौ।
सूरदास प्रभु क्यौं नहि चेतत, जब लगि काल न आयौ।।301।।