झूठी बात न होति भलाई।
चोर जुवार संग बरु करियै, झूठे कौ नहि कोउ पतियाई।।
साँची को झूठी करि डारै, पचनि में मरजादा जाई।
बोलि उठी इक सखी बीचही, तै कह जानै लाज बड़ाई।।
यामैं कछु नफ़ा है उनकौ, जातै मन ऐसीयै भाई।
‘सूर’ सुभाउ परयौ ऐसोई, को जानै री बुद्धि पराई।।1779।।