झूँमक सारी तन गोरै हो -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूही


झूँमक सारी तन गोरै हो।
जगमग रह्यौ जराइ कौ टीकौ, छवि की उठति झकोरै हो।।
रत्नजटित के सुभग तरयौना, मनहुँ जात रवि भोरै हो।
दुलरी कंठ निरखि पिय इक टक, दृग भए रहैं चकोरै हो।।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन कौं, रीझि रीझि तृन तोरै हो।।2794।।

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