ज्ञान बिना कहुँवै सुख नाहीं।
घट घट व्यापक दारु अगिनि ज्यौ, सदा बसै उर माही।।
निरगुन छाँड़ि सगुन कौ दौरतिं, सु धौ कहौ किहिं पाही।
तत्त्व भजौ जो निकट न छूट, ज्यौ तनु तै परछाही।।
तिहि तै कहौ कौन सुख पायौ, जिहिं अब लौ अवगाहीं।
'सूरदास' ऐसै करि लागत, ज्यौ कृषि कीन्हे पाही।।3606।।