श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। अब प्रसंगानुसार मैं अपने दल के जो प्रसिद्ध योद्धा एवं प्रधान वीर हैं उनके विषय में बतलाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनिये। आप-जैसे जो प्रमुख वीर हैं, उनमें ही आपकी जानकारी के लिये एक-दो के नाम बतलाता हूँ। ये गंगानन्दन भीष्म हैं जो प्रताप में सूर्य के समान तेजस्वी हैं। ये वीरवर कर्ण हैं जो शत्रुरूपी हाथी का विनाश करने वाले साक्षात् सिंह हैं। इनमें से एक-एक के केवल संकल्प मात्र से जगत् की उत्पत्ति और संहार हो सकता है और क्या? यह अकेले कृपाचार्य पूरे नहीं है क्या? यहाँ वीर विकर्ण है और देखिये, उधर वे अश्वत्थामा हैं जिनसे महाकाल भी डरता है। संग्राम विजयी सोमदत्त का पुत्र सौमदत्ति (भूरिश्रवा) इत्यादि और भी अनेक ऐसे वीर हैं जिनके बल का अनुमान स्वयं विधाता भी नहीं लगा सकते।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (103-107)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |