ज्ञानेश्वरी पृ. 9

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥7॥
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥8॥

अब प्रसंगानुसार मैं अपने दल के जो प्रसिद्ध योद्धा एवं प्रधान वीर हैं उनके विषय में बतलाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनिये।

आप-जैसे जो प्रमुख वीर हैं, उनमें ही आपकी जानकारी के लिये एक-दो के नाम बतलाता हूँ। ये गंगानन्दन भीष्म हैं जो प्रताप में सूर्य के समान तेजस्वी हैं। ये वीरवर कर्ण हैं जो शत्रुरूपी हाथी का विनाश करने वाले साक्षात् सिंह हैं। इनमें से एक-एक के केवल संकल्प मात्र से जगत् की उत्पत्ति और संहार हो सकता है और क्या? यह अकेले कृपाचार्य पूरे नहीं है क्या? यहाँ वीर विकर्ण है और देखिये, उधर वे अश्वत्थामा हैं जिनसे महाकाल भी डरता है। संग्राम विजयी सोमदत्त का पुत्र सौमदत्ति (भूरिश्रवा) इत्यादि और भी अनेक ऐसे वीर हैं जिनके बल का अनुमान स्वयं विधाता भी नहीं लगा सकते।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (103-107)

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः