ज्ञानेश्वरी पृ. 825

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-18
मोक्षसंन्यास योग

यदि जंगल में निवास करने वाले किसी व्यक्ति को काई राजमहल में ले जाय तो उस जंगल निवासी को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी कोई वस्तु गुम हो गयी है और उसे दसों दिशाएँ बिलकुल सूनी प्रतीत होती हैं अथवा जिस समय दिन का उदय होता है, उस समय निशाचरों के लिये मानों रात ही हो जाती है। उस व्यक्ति को वह विषय अत्यन्त नीरस जान पड़ता है, जो व्यक्ति जिस विषय की सरसता नहीं समझता और यही कारण है कि संजय की समस्त बातें धृतराष्ट्र को रुचिकर नहीं लगती थीं तथा व्यर्थ जान पड़ती थीं और यह बात उसके लिये एकदम स्वाभाविक ही थी। फिर महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से कहा-‘हे संजय, अब तुम जरा यह बतलाओ कि यह जो युद्ध आ खड़ा हुआ है, इसमें अन्ततः विजयश्री किसके हाथ लगेगी। मुझे तो यह पूरा-पूरा भरोसा है कि दुर्योधन का पराक्रम सदा सफल होता है और यदि पाण्डव पक्ष की सेना के साथ तुलना की जाय तो दुर्योधन पक्ष की सेना भी उससे डेढ़ गुनी अधिक है। अतएव मैं तो यही समझता हूँ कि अन्ततः विजय श्री दुर्योधन के ही हाथ लगेगी। क्यों, यह बात मैं ठीक कह रहा हूँ या नहीं? संजय, मैं तो यही समझता हूँ, पर न जाने तुम्हारी ज्योतिष क्या कहती है? अतएव हे संजय, तुम जैसा समझते हो, वैसा ही मुझे बतलाओ।”

Next.png

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः