श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-18
मोक्षसंन्यास योग
यदि जंगल में निवास करने वाले किसी व्यक्ति को काई राजमहल में ले जाय तो उस जंगल निवासी को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरी कोई वस्तु गुम हो गयी है और उसे दसों दिशाएँ बिलकुल सूनी प्रतीत होती हैं अथवा जिस समय दिन का उदय होता है, उस समय निशाचरों के लिये मानों रात ही हो जाती है। उस व्यक्ति को वह विषय अत्यन्त नीरस जान पड़ता है, जो व्यक्ति जिस विषय की सरसता नहीं समझता और यही कारण है कि संजय की समस्त बातें धृतराष्ट्र को रुचिकर नहीं लगती थीं तथा व्यर्थ जान पड़ती थीं और यह बात उसके लिये एकदम स्वाभाविक ही थी। फिर महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से कहा-‘हे संजय, अब तुम जरा यह बतलाओ कि यह जो युद्ध आ खड़ा हुआ है, इसमें अन्ततः विजयश्री किसके हाथ लगेगी। मुझे तो यह पूरा-पूरा भरोसा है कि दुर्योधन का पराक्रम सदा सफल होता है और यदि पाण्डव पक्ष की सेना के साथ तुलना की जाय तो दुर्योधन पक्ष की सेना भी उससे डेढ़ गुनी अधिक है। अतएव मैं तो यही समझता हूँ कि अन्ततः विजय श्री दुर्योधन के ही हाथ लगेगी। क्यों, यह बात मैं ठीक कह रहा हूँ या नहीं? संजय, मैं तो यही समझता हूँ, पर न जाने तुम्हारी ज्योतिष क्या कहती है? अतएव हे संजय, तुम जैसा समझते हो, वैसा ही मुझे बतलाओ।” |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |