श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-18
मोक्ष संन्यास योग
आन्नद की बाढ़ उतरने पर संजय ने कहा-स्वयं उपनिषदों को भी जिस ज्ञान के बारे में पता नहीं है, वही ज्ञान आज मैंने श्रीव्यास देव की कृपा से श्रवण किया। उसे श्रवण करते ही मेरे भीतर ब्रहात्व समा गया और मेरे लिये 'मैं' तथा 'तुम' की यानी द्वैत की सृष्टि का अवसान हो गया। इन समस्त योग-मार्गो का जिन में पर्यवसान होता है, उन भगवान के वचन महर्षि व्यास की बहाने स्वयं में बलपूर्वक द्वैतभाव अथवा भिन्नता की स्थापना करके आत्मविचार के विषय में जो कुछ कहा था, जो उपदेश किया था, जब उस उपदेश के सर्वोत्कृष्ट पात्र बनने की योग्यता मुझ-जैसे साधारण व्यक्ति में आ गयी, तो फिर श्रीगुरु की सामर्थ्य भला में कहाँ तक बखानुँ ! |
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