ज्ञानेश्वरी पृ. 821

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-18
मोक्षसंन्यास योग

यदि कोई इस बात का निर्णय करने लगे तो स्वयं निश्चय ही स्तब्ध हो जाता है। इस प्रकार श्रीकृष्ण तथा अर्जुन उस सम्भाषण में एकदम एक-से हो गये थे।

यदि दो दिशाओं से आकर जल के दो प्रवाह परस्पर मिल जायँ और ऊपर से लवण भी आकर उनमें मिल जाय तो क्या वह लवण उन दोनों जल-प्रवाहों को अवरुद्ध कर सकता है अथवा वह भी पलभर में उन दोनों प्रवाहों के साथ मिलकर एकाकार हो जायग? ठीक इसी प्रकार जब मैं उस संवाद में इस प्रकार एकाकार होने वाले भगवान् श्रीकृष्ण तथा अर्जुन का अपने हृदय में ध्यान करता हूँ, तो मेरी दशा भी उसी लवण की भाँति हो जाती है।” संजय इन शब्दों को पूरा-पूरा मुख से निकाल भी न पाया था कि इतने में सात्त्विक भाव ने आकर उसकी संजयत्ववाली स्मृति नष्ट कर दी अर्थात् मैं सजंय हूँ उसे इस बात का ध्यान भी न रह गया। उसे ज्यों-ज्यों रोमांच होता आता था, उसका शरीर भी त्यों-त्यों संकुचित होता जाता था। उसी स्तम्भित अवस्था में उसकें शरीर से जो स्वेद निकल आया था, उसके कारण उसके देह का कम्प भी अत्यधिक हो गया था। उसकी आँखें अद्वैतानन्द का अनुभव होने के कारण भर आयीं। उसके नेत्रों में वे प्रेम के आँसू नहीं थे, बल्कि मानो उसके उदर में नही समा रहे थे तथा गला अवरुद्ध हो गया था और यही कारण है कि श्वास के साथ शब्दार्थ मिलकर एक हो गये थे। किंबहुन, आठों सात्त्विकभाव एकदम प्रकट हो गये और संजय की कुछ ऐसी विचित्र दशा हो गयी कि उसके मुख से शब्द ही न निकल पाता था। उस समय संजय मानो श्रीकृष्णार्जुन-संवाद-सुख का चतुष्पथ बन गया था, पर इस सुख का स्वभाव ही इस प्रकार का है कि वह स्वत: शान्त हो जाता है। अतएव संजय भी अतिशीघ्र शान्त हो गया और फिर उसे अपने देह की स्मृति हो आयी।

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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