श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-3
कर्मयोग
जो मनुष्य प्राप्त की हुई सम्पत्ति का निष्काम बुद्धि से स्वधर्मानुसार उचित कार्यों में उपयोग करता है; गुरु, गोत्र और अग्नि की पूजा करता है, योग्य अवसर के अनुसार ब्राह्मणों की सेवा करता है और पितरों की सन्तुष्टि के लिये श्राद्धादि कर्म करता है और इस प्रकार यज्ञों का सम्पादन स्वधर्माचरण पूर्वक करता है, जो पंच-महायज्ञादि सम्पन्न करके अग्नि में हवन करता है और तब सहज में ही जो कुछ बचा-खुचा रहता है, वही भाग यह समझ-बूझकर अपने कुटुम्बियों के साथ सुखपूर्वक उपभोग करता है कि यही अवशिष्ट भाग पापों का विनाशक है, जो व्यक्ति इस प्रकार यज्ञों के हवन का बचा हुआ अवशेष सेवन करता है, उससे सब पातक उसी प्रकार किनारा कस लेते हैं, जिस प्रकार अमृत के मिलने पर महारोग मनुष्य को देखते ही भाग खड़े होते हैं अथवा जैसे तत्त्वज्ञानी को भ्रान्ति लेशमात्र भी स्पर्श नहीं कर सकती, ठीक वैसे ही यज्ञ-शेष का सेवन करने वाले को पाप कभी छू नहीं सकता। इसलिये जो कुछ स्वधर्म से अर्जित मिल जाय, उसका विनियोग भी स्वधर्म के लिये ही करना चाहिये; और तब शेष भाग से सन्तोषपूर्वक जीवन-निर्वाह करना चाहिये। इस प्रकार श्रीमुरारी ने अर्जुन को यह प्राचीन कथा सुनायी थी और कहा था कि हे अर्जुन! तुम यह स्वधर्मयज्ञ अवश्य करो; इसे बिना किये मत रहो। जो लोग इस देह को ही आत्मा मानते हैं और विषयों को भोग्य समझते हैं; तथा इस भोग-बुद्धि के पीछे जिन्हें और किसी बात का ध्यान ही नहीं रहता, उन मूर्खों को इस नित्य-यज्ञ के साधन के रहस्य का ज्ञान ही नहीं होता और वे केवल अहंकारपूर्वक सुख भोगने की ही इच्छा करते हैं। जो लोग केवल इन्द्रियों को रुचिकर लगने के लिये ही अन्न पकाते हैं, उनके विषय में केवल यही जानाना चाहिये कि वे पापपरायण पुरुष केवल पातकों का ही सेवन कर रहे हैं। यह सम्पत्ति स्वधर्मरूपी यज्ञ में केवल हवन-सामग्री है और यह सामग्री इस यज्ञ में आदिपुरुष को समर्पित करने के ही लिये है; किन्तु ऐसा न करके मूर्ख लोेग इस तत्त्व का परित्याग कर देते हैं और अपनी रुचि के अनुसार नाना प्रकार के व्यंजन प्रस्तुत करते हैं। जिस अन्न से यह यज्ञ सिद्ध होता है और आदिपुरुष सन्तुष्ट होता है, वह सामान्य अन्न नहीं है। इसे साधारण अन्न न समझकर प्रत्यक्ष ब्रह्मरूप ही समझना चाहिये; क्योंकि यही सारे संसार के जीवन का (जीने का) साधन है।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (119-133)
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