श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि। इस सेना में और भी ऐसे असाधारण वीर हैं जो शस्त्र एवं अस्त्रों की विद्या में प्रवीण तथा क्षात्र धर्म में निपुण हैं। अब मैं उनका प्रसंगानुसार कुतूहलवश वर्णन करता हूँ जो बल में, प्रौढ़ता में और पुरुषार्थ में एकदम भीम तथा अर्जुन के समान ही हैं। इस सेना में शूरवीर युयुधान (सात्यकि) एवं राजा विराट और महारथी वीर शिरोमणि द्रुपद भी उपस्थित हैं।[1] धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्। देखिये चेकितान, धृष्टकेतु, पराक्रमी काशिराज, नृपश्रेष्ठ उत्तमौजा और शैब्य भी यहाँ आये हैं। और देखिये, वे कुन्तिभोज हैं। वे युधामन्यु हैं और ये इधर पुरुजित् आदि अन्य राजा लोग भी हैं।” दुर्योधन ने फिर कहा-“हे आचार्य द्रोण! देखिये, यह सुभद्रा को आह्लादित करने वाला उसका पुत्र अभिमन्यु है, जो देखने में दूसरे तरुण अर्जुन की भाँति प्रतीत होता है। इनके अलावा ये सब द्रौपदी के पुत्र और अन्य अनेक महारथी वीर यहाँ उपस्थित हैं जिनकी गणना नहीं की जा सकती है।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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