ज्ञानेश्वरी पृ. 8

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।4।।

इस सेना में और भी ऐसे असाधारण वीर हैं जो शस्त्र एवं अस्त्रों की विद्या में प्रवीण तथा क्षात्र धर्म में निपुण हैं। अब मैं उनका प्रसंगानुसार कुतूहलवश वर्णन करता हूँ जो बल में, प्रौढ़ता में और पुरुषार्थ में एकदम भीम तथा अर्जुन के समान ही हैं। इस सेना में शूरवीर युयुधान (सात्यकि) एवं राजा विराट और महारथी वीर शिरोमणि द्रुपद भी उपस्थित हैं।[1]

धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुंगवः॥5॥
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥6॥

देखिये चेकितान, धृष्टकेतु, पराक्रमी काशिराज, नृपश्रेष्ठ उत्तमौजा और शैब्य भी यहाँ आये हैं। और देखिये, वे कुन्तिभोज हैं। वे युधामन्यु हैं और ये इधर पुरुजित् आदि अन्य राजा लोग भी हैं।” दुर्योधन ने फिर कहा-“हे आचार्य द्रोण! देखिये, यह सुभद्रा को आह्लादित करने वाला उसका पुत्र अभिमन्यु है, जो देखने में दूसरे तरुण अर्जुन की भाँति प्रतीत होता है। इनके अलावा ये सब द्रौपदी के पुत्र और अन्य अनेक महारथी वीर यहाँ उपस्थित हैं जिनकी गणना नहीं की जा सकती है।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (96-98)
  2. (99-102)

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श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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