ज्ञानेश्वरी पृ. 754

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-18
मोक्ष संन्यास योग

अब मैं इन सबके विहित कर्मों का विवेचन करता हूँ। ये चारों वर्ण इन्हीं कर्मों के गुणों से जीवन और मृत्यु के झंझटों से छूटकर आत्मस्वरूप प्राप्त करते हैं, प्रकृति के त्रिगुणों में ये कर्म चारों वर्णों को चार प्रकार से बाँट दिये हैं। जैसे पिता के द्वारा इकट्ठा किया हुआ वैभव उसके बेटों में बँट जाता है अथवा सूर्य के प्रकाश में दृष्टिगोचर होने वाले मार्ग भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाने वाले पथिकों में बँट जाते हैं अथवा जैसे कोई ऐश्वर्यवान व्यक्ति अपना सारा कारोबार अपने सेवकों में बाँट देता है, ठीक वैसे ही प्रकृति के इन गुणों ने भी इन कर्मों के पृथक्-पृथक् विभाग करके चारों वर्णों में बाँट दिये हैं। इनमें से सत्त्वगुण ने अपने आधे-आधे भाग से ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों को अंकित किया है। वैश्यों के हिस्से में सत्त्वमिश्रित रजोगुण और शूद्रों के खाते में तम से भरा हुआ रजोगुण रहता है। हे सुविज्ञ! यह बात तुम अपने ध्यान में रखो कि शुरुआत में जो मानव-संघ एकदम एक ही रूप वाला था, उसमें इन गुणों ने यह चातुर्वर्ण्यात्मक भेद उत्पन्न किया है। फिर जैसे अन्धकार में पड़ी हुई वस्तु हमें दीपक दिखलाता है, ठीक वैसे ही अपने गुणों से आवृत कर्म हमें शास्त्र दिखलाता है। हे परम सौभाग्यशाली अर्जुन! अब तुम यह सुनो कि भिन्न-भिन्न वर्णों के लिये स्वाभाविक और उपयुक्त कर्म कौन-से हैं।[1]

Next.png

टीका टिप्पडी और संदर्भ

  1. (818-832)

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः