श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-18
मोक्षसंन्यास योग
जब तक मनुष्य को यह ज्ञान न हो जाय कि वास्तव में यह डोरी है तब तक यदि उसे उस डोरी में सर्पाभास होता रहे तथा उससे भय लगता रहे तो उसमें आश्चर्य की ही कौन-सी बात है? जब तक आँखों में पीलिया रोग रहेगा, तब तक चन्द्रमा पीत वर्ण का ही दृष्टिगत होगा। यदि मृगजल के धोखे में मृग आ जाय तो इसमें आश्चर्य ही क्या है? इसी प्रकार जो व्यक्ति शास्त्रों और गुरु के नाम की हवा तक अपने अंग में नहीं लगने देता, जो एकमात्र मूर्खता के वशीभूत होकर अपना जीवन यापन करता है, वह अपनी आत्मा पर शरीररूपी जाल ठीक वैसे ही लादता है, जैसे गीदड़ मेघों की गति का आरोप चन्द्रमा पर करते हैं। फिर अपनी इसी समझ के कारण, हे किरीटी! वह कर्म की मजबूत गाँठ से इस देहरूपी कैदखाने में अच्छी तरह जकड़ कर बन्द हो जाता है। देखों बेचारा तोता जिस समय नलिका-यन्त्र पर बैठता है, उस समय यद्यपि उसके पंजे मुक्त ही रहते हैं, पर फिर भी उसके मन में इस बात का दृढ़ विश्वास हो जाता है कि मैं इसी नलिका-यन्त्र के साथ बँध गया हूँ और यही कारण है कि वह नलिका-यन्त्र पर दृढ़तापूर्वक बैठा रहता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति अपने निर्मल आत्मस्वरूप पर प्रकृति (माया) से किये हुए कर्मों का आरोप करता है, वह असंख्य कोटि मापों से सदा कर्मों को मापता ही रह जाता है। बड़वानल तो रहता समुद्र में ही है, पर समुद्र का जल उसका स्पर्श नहीं करता। इसी प्रकार जो कर्मों से व्याप्त तो रहता है, पर फिर भी जिसके साथ कर्मों का सम्पर्क नहीं होता और इस प्रकार अलिप्तरूप से रहकर जो समस्त कर्म सम्पन्न करता है, उसे पहचानने के लक्षण अब मैं तुमको बतलाता हूँ, सुनो। |
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