ज्ञानेश्वरी पृ. 349

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

Prev.png

अध्याय-11
विश्वरूप दर्शनयोग


अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् ।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ॥10॥

अर्जुन ने भगवान् के ऐसे सुन्दर-सुन्दर मुख देखे कि मानो वे विष्णु के राजभवन थे अथवा लावण्य लक्ष्मी के अनेक भण्डार थे अथवा बाहर से पूर्ण आनन्दवन अथवा सौन्दर्य-साम्राज्य थे; परन्तु इस सुन्दर मुखों के बीच-बीच में बहुतेरे ऐसे मुख भी थे, जो बहुत ही भयानक जान पड़ते थे। उन्हें देखकर ऐसा भान होता था कि मानो कालरात्रि की सेना ही उमड़ पड़ी हो अथवा स्वयं मृत्यु के मुख निकल आये हों अथवा भय के किले ही बनाये गये हों अथवा प्रलयाग्नि के महाकुण्ड ही खुल गये हों। उस विश्वरूप में अर्जुन ने ऐसे बहुत-से विकराल मुख देखे तथा बहुत-से सजे सजाये सौम्य मुख भी देखे। वास्तव में उस ज्ञान-दृष्टि को भी कहीं उन मुखों का अवसान दृष्टिगोचर नहीं होता था। फिर अर्जुन बड़े कौतुक से उस विश्वरूप के आँखों की ओर देखने लगा। वे आँखें नाना प्रकार के प्रस्फुटित कमल-वन की भाँति थीं। इस प्रकार सूर्य के रंग के और ऐसे तेजस्वी आँख अर्जुन ने देखे। जैसे कल्पान्काल में श्यामवर्ण के मेघ-समूह में विद्युत् की चमक दृष्टिगत होती है, वैसे ही उन श्याम और टेढ़ी भौहों के नीचे अग्नि की तरह पीतवर्ण की दृष्टि की किरणें सुशोभित हो रही थीं। इस प्रकार उस एक ही रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक चमत्कार देखकर अर्जुन को उस रूप की अनेकता पूर्णरूप से विदित हो गयी। वह मन-ही-मन कहने लगा कि इसके चरण कहाँ हैं? मुकुट किस ओर हैं तथा हाथ कहाँ हैं? इस प्रकार विश्वरूप-दर्शन की उसकी उत्सुकता बढ़ने लगी। उस अवसर पर अर्जुन मानो भाग्यनिधि ही बन गया था।

Next.png

संबंधित लेख

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः