श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-10
विभूति योग
पारिजात तो साक्षात् कल्पद्रुम ही है और चन्दन का गुण भी बहुत विख्यात है, तो भी वृक्षों की कोटि में मेरी प्रमुख विभूति अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष ही है। हे पाण्डव, देवर्षियों में नारद और गन्धर्वों में चित्ररथ भी मुझे ही जानना चाहिये। हे ज्ञानवन्त, समस्त सिद्धों में कपिलाचार्य मैं ही हूँ और मैं ही समस्त अश्व जाति में प्रसिद्ध उच्चैःश्रवा भी हूँ। हे अर्जुन, जो हाथी राजाओं के भूषण की तहर जान पड़ते हैं, उनमें ऐरावत भी मैं ही हूँ। समुद्र का मन्थन करने पर देवताओं को जो अमृत मिला था, वह भी मैं ही हूँ। जिसकी आज्ञा सारे लोक की प्रजा शिरोधार्य करती है, सारी प्रजा में उसी राजा को मेरी प्रमुख विभूति जानना चाहिये।[1]
हे धनुर्धर! समस्त शस्त्रों में मैं वज्र हूँ, जो शतक्रतु इन्द्र के हाथ में रहता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि मैं ही गौओं में कामधेनु हूँ और जन्म देने वालों में जो मदन है, वह भी मैं ही हूँ। हे कुन्तीसुत, सर्पकुल का नायक वासुकि और समस्त नागों में अनन्त नाम का नाग मेरी प्रधान विभूति है। समस्त जलचरों में जो पश्चिम दिशा का स्वामी वरुण है, वह भी मैं ही हूँ। मैं ही समस्त पितृगणों में अर्यमा नामक पितृ देवता हूँ। आत्मा में रमण करने वाले रमापति ने कहा कि पूरे संसार के शुभ और अशुभ कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाला, सबके अन्तःकरण की परख करने वाला और उन्हें कर्मानुसार फल-भोग कराने वाला जो नियन्ता है और सबके कर्मों को सदा देखने वाला जो यम है, वह भी मैं ही हूँ।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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