श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-10
विभूति योग
मैंने अभी तक जितनी बातें कही थीं, वह सब सिर्फ यही जानने के लिये कि इस विषय की ओर तुम्हारा कितना ध्यान है। इस परीक्षा से यह सिद्ध हुआ कि इस विषय की ओर तुम्हारा ध्यान अधूरा नहीं बल्कि भरपूर है। सबसे पहले घट में थोड़ा-सा जल डालकर यह देखा जाता है कि वह जल उस घट में ठहरता है अथवा चू जाता है और जब वह पहले का डाला हुआ जल चूता नहीं तो उसमें और अधिक जल डालकर वह घट भरा जाता है। इसीलिये मैंने तुम्हें पहले-पहले थोड़ी-सी बातें बतलायी थीं और अब यह सिद्ध हो गया है कि तुम्हें सब बातें बतला देना ही समीचीन (ठीक) है। जिस समय कोई नया भृत्य नियुक्त किया जाय उस समय उसकी परख करने के लिये कोई कीमती वस्तु किसी ऐसी जगह पर रख देनी चाहिये, जहाँ सहज में ही उसकी दृष्टि उस वस्तु पर पड़े और जब उसके मन में उस वस्तु के प्रति लालसा न उत्पन्न हो और इस प्रकार वह अपनी विश्वसनीयता का पूरा-पूरा भरोसा दिला दे, तब उस भृत्य को भण्डार आदि के काम पर लगाना चाहिये। इसी प्रकार हे किरीटी, तुम मेरी कसौटी पर खरे उतरे हो और इसलिये अब तुम मेरे सब कुछ हो गये हो।” सर्वेश्वर श्रीकृष्ण ने इस प्रकार अर्जुन से कहा और तब जैसे ऊँचे पर्वतों को देखकर मेघ भर जाता है और वृष्टि करने के लिये तत्पर हो जाता है, वैसे ही श्रीकृष्ण भी प्रेम से भर गये और कहने लगे-“हे वीर शिरोमणि अर्जुन, ध्यानपूर्वक सुनो। पहले जितनी बातें मैं तुम्हें बतला चुका हूँ वही अब मैं फिर से बतलाता हूँ। जब मनुष्य प्रत्येक वर्ष खेती करता रहता है और प्रत्येक वर्ष उसे अच्छी फसल भी प्राप्त होती रहती है, तब खेती के लिये मेहनत करने में उसका जी नहीं ऊबता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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