श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-7
ज्ञानविज्ञान योग
अब श्रोताओं को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि अर्जुन के द्वारा पूछे गये प्रश्न और श्रीकृष्ण के द्वारा दिये हुए उत्तर संजय कैसे प्रेम से बतलाते हैं। ये सारी बातें देशी भाषा में बतलायी जायँगी। इन्हें देशी भाषा में बतलाने का प्रमुख कारण यह है कि श्रवणेन्द्रियों को इनका श्रवण होने से पूर्व ही बुद्धि अपना उपयोग करने लगे। बुद्धि की जिह्वा से अक्षरों के आन्तरिक अर्थ का रसास्वादन करने से पूर्व ही अक्षरों के सिर्फ आकृति-सौन्दर्य से ही इन्द्रियाँ अत्यन्त मुग्ध हो जाती हैं। देखिये, मालती की कलियों की महक घ्राणेन्द्रिय को तो तृप्त करती ही है, पर उन कलियों का बाह्यरूप देखकर आँख क्या उनसे पूर्व ही सन्तुष्ट नहीं हो जाती? ठीक इसी प्रकार देशी भाषा के सौन्दर्य से इन्द्रियों को शक्ति मिल जाती है और तब वे सिद्धान्तरूपी नगर तक आसानी से पहुँच सकती हैं। अब इस प्रकार के भाषा-सौन्दर्य मैं वह बातें स्पष्टतः बतलाना चाहता हूँ। जो शब्दों के लिये अलभ्य ही हैं। इसलिये श्रीनिवृत्तिनाथ का दास ज्ञानदेव अपने श्रोतागणों से निवेदन करता है कि आप लोग मनोयोग पूर्वक सुनें।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (180-210)
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