ज्ञानेश्वरी पृ. 213

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-7
ज्ञानविज्ञान योग

अब श्रोताओं को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि अर्जुन के द्वारा पूछे गये प्रश्न और श्रीकृष्ण के द्वारा दिये हुए उत्तर संजय कैसे प्रेम से बतलाते हैं। ये सारी बातें देशी भाषा में बतलायी जायँगी। इन्हें देशी भाषा में बतलाने का प्रमुख कारण यह है कि श्रवणेन्द्रियों को इनका श्रवण होने से पूर्व ही बुद्धि अपना उपयोग करने लगे। बुद्धि की जिह्वा से अक्षरों के आन्तरिक अर्थ का रसास्वादन करने से पूर्व ही अक्षरों के सिर्फ आकृति-सौन्दर्य से ही इन्द्रियाँ अत्यन्त मुग्ध हो जाती हैं। देखिये, मालती की कलियों की महक घ्राणेन्द्रिय को तो तृप्त करती ही है, पर उन कलियों का बाह्यरूप देखकर आँख क्या उनसे पूर्व ही सन्तुष्ट नहीं हो जाती? ठीक इसी प्रकार देशी भाषा के सौन्दर्य से इन्द्रियों को शक्ति मिल जाती है और तब वे सिद्धान्तरूपी नगर तक आसानी से पहुँच सकती हैं। अब इस प्रकार के भाषा-सौन्दर्य मैं वह बातें स्पष्टतः बतलाना चाहता हूँ। जो शब्दों के लिये अलभ्य ही हैं। इसलिये श्रीनिवृत्तिनाथ का दास ज्ञानदेव अपने श्रोतागणों से निवेदन करता है कि आप लोग मनोयोग पूर्वक सुनें।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (180-210)

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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