श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर
अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:। जो शस्त्रविद्या में पारंगत हैं, जो (अस्त्रों के) मन्त्रविद्या के मूर्तिमान् अवतार हैं, अस्त्रविद्या जिनके कारण जगत् में प्रसिद्ध है ये लोग इस संसार में अद्वितीय हैं, इनमें अद्भुत शौर्य है। इतना होते हुए भी ये सब वीर जीने की आशा छोड़कर मेरी तरफ आकर मिले हैं। इस प्रकार इन उत्कृष्ट योद्धाओं को मैं ही सर्वस्व हूँ, ऐसा लगता है। हमारे कार्य के सामने इन लोगों को अपना जीवन तुच्छ लगता है; ऐसे ये निस्सीम और उत्तम स्वामि भक्त हैं। जिस प्रकार पतिव्रता का हृदय अपने पति के सिवा किसी अन्य का स्पर्श नहीं करता। ये लोग युद्ध काल में पारंगत हैं और युद्ध कौशल से कीर्ति को जीतने वाले हैं। अधिक क्या बतावें? क्षत्रियों के बाने का उद्गम इन्हीं लोगों से हुआ है। ऐसे परम प्रतापी शूरवीर हमारे दल में हैं, भला उनकी गणना कहाँ तक की जाय! बस, इतना ही समझिये कि वे अनगिनत हैं।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (108-114)
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