ज्ञानेश्वरी पृ. 10

श्रीज्ञानेश्वरी -संत ज्ञानेश्वर

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अध्याय-1
अर्जुन विषाद योग

अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविता:।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥9॥

जो शस्त्रविद्या में पारंगत हैं, जो (अस्त्रों के) मन्त्रविद्या के मूर्तिमान् अवतार हैं, अस्त्रविद्या जिनके कारण जगत् में प्रसिद्ध है ये लोग इस संसार में अद्वितीय हैं, इनमें अद्भुत शौर्य है। इतना होते हुए भी ये सब वीर जीने की आशा छोड़कर मेरी तरफ आकर मिले हैं। इस प्रकार इन उत्कृष्ट योद्धाओं को मैं ही सर्वस्व हूँ, ऐसा लगता है। हमारे कार्य के सामने इन लोगों को अपना जीवन तुच्छ लगता है; ऐसे ये निस्सीम और उत्तम स्वामि भक्त हैं। जिस प्रकार पतिव्रता का हृदय अपने पति के सिवा किसी अन्य का स्पर्श नहीं करता। ये लोग युद्ध काल में पारंगत हैं और युद्ध कौशल से कीर्ति को जीतने वाले हैं। अधिक क्या बतावें? क्षत्रियों के बाने का उद्गम इन्हीं लोगों से हुआ है। ऐसे परम प्रतापी शूरवीर हमारे दल में हैं, भला उनकी गणना कहाँ तक की जाय! बस, इतना ही समझिये कि वे अनगिनत हैं।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (108-114)

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
पहला अर्जुन विषाद योग 1
दूसरा सांख्य योग 28
तीसरा कर्म योग 72
चौथा ज्ञान कर्म संन्यास योग 99
पाँचवाँ कर्म संन्यास योग 124
छठा आत्म-संयम योग 144
सातवाँ ज्ञान-विज्ञान योग 189
आठवाँ अक्षर ब्रह्म योग 215
नवाँ राज विद्याराज गुह्य योग 242
दसवाँ विभूति योग 296
ग्यारहवाँ विश्व रूप दर्शन योग 330
बारहवाँ भक्ति योग 400
तेरहवाँ क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 422
चौदहवाँ गुणत्रय विभाग योग 515
पंद्रहवाँ पुरुषोत्तम योग 552
सोलहवाँ दैवासुर सम्पद्वि भाग योग 604
सत्रहवाँ श्रद्धात्रय विभाग योग 646
अठारहवाँ मोक्ष संन्यास योग 681

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