जिसने शुभ-धारा सब खो‌ई -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग देस - तीन ताल

जिसने शुभ-धारा सब खो‌ई,
मुझ-सा नीच न दूजा को‌ई,
पर तुम-सा न दयामय को‌ई,
ऐसा जग दातार नहीं है॥-मेरे०॥11॥
मैं अपराधी सदा तुम्हारा,
पर मैं नित्य तुम्हें अति प्यारा,
कभी न तुमने मुझे बिसारा,
या यह अजब दुलार नहीं है?॥-मेरे०॥12॥
सदा तुम्हारा प्यार पा रहा,
सदा तुम्हारा दिया खा रहा,
तब भी नित विपरीत जा रहा,
कुछ भी सोच-विचार नहीं है!॥-मेरे०॥13॥
नीच, दोष मम अन्तहीन है,
किंतु तुम्हारी क्षमा पीन है,
होती कभी न तनिक क्षीण है,
उसका को‌ई पार नहीं है॥-मेरे०॥14॥
करते कृपा न कभी अघाते,
गिरे हु‌एको स्वयं उठाते,
हाथ पकड़ सन्मार्ग चलाते,
तुम-सा प्रेमाधार नहीं है॥-मेरे०॥15॥
अपना विरद पुनीत निभाते,
दोष भूल सिर हाथ फिराते,
ले निज गोद नित्य दुलराते,
या अथाह यह प्यार नही है?
मेरे अघका पार नहीं है॥-मेरे०॥16॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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