जय अरु विजय पारषद दोइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



हरि-हरि हरि-हरि सुमिरन करौ। हरि-चरनाविंद उर धरौ।
जय अरु विजय पारषद दोइ। विप्र-सराप असुर भए सोइ।
दोउ जन्म ज्यौं हरि उद्धारे। सो तौ मैं तुमसौं उच्चारे।
दंतवक्र-सिसुपाल जो भए। वासुदेव ह्वै सो पुनि हए।
औरौ लीला बहु विस्तार। कीन्हौ जीवनि कौ निस्तार।
सौ अब तुमसौं सकल बखानौं। प्रेम सहित सुनि हिरदै आनौ।
जो यह कथा सुनै चित लाइ। सो भव तरि बैकुंठहिं जाइ।
जैसैं सुक नृप कौं समुझायौ। सूरदास त्यौं ही कहि गायौ॥2॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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