जमुना जलहिं गई जे नारी। डारि चलीं सिर गागरि भारी।।
देखौं मैं बालक कत छाँड़यौ। एक कहति आँगन दधि माँड्यौ।।
एक कहति माराग नहिं पावति। एक सामुहैं बोलि बतावति।।
ब्रजबासी सब अति अकुलाने। काल्हिहिं पूज्यौ फल्यौ विहाने।।
कहाँ रहे अब कुँवर कन्हाई। गिरि गोबरधन लेहिं बुलाई।।
जेंवन सहस भुजा धरि आवै। तब द्वै भुज हमकौं दिखरावै।।
ये देवता खात ही लौं के। पाछे पुनि तुम कौन, कहौ के।।
सूर स्याम सपनौ प्रगटायौ। घर के देव सबनि बिसरायौ।।933।।