जमुना-तट देखे नँद-नंदन।
मोर-मुकुट, मकराकृत-कुंडल, पीत-वसन, तन चंदन।।
लोचन तृप्त भए दरसन तैं उर की तपति बुझानी।
प्रेम-मगन तब भई सुन्दरी, उर गदगद, मुख-बानी।।
कमल-नयन तट पर है ठाढ़े, सकुचहिं मिलि ब्रज-नारी।
सूरदास-प्रभु अंतरजामी, व्रत-पूरन पगधारी।।778।।