जब हरि मुरली-नाद प्रकास्यौ।
जंगम जड़, धावर चर कीन्हे, पाहन जलज बिकास्यौ।।
स्वर्ग-पताल दसौं दिसि पूरन, ध्वनि आच्छादित कीन्हौ।
निसि हरि कल्प समान बढ़ाई, गोपिनि कौं सुख दीन्हौ।।
मैमत भए, जीव जल-थल के तनु की सुधि न सम्हार।
सूर स्याम-मुख बेनु मधुर सुनि, उलटे सब ब्यवहार।।1066।।