जब से मोहिं नंदनंदन -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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रूप राग





जब से मोहिं नंदनँदन, दृष्टि पडयो माई ।
तब से परलोक लोक, कछू न सोहाई ।
मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहै।
केसर को तिलक भाल, तीन लोक मोहैं ।
कुंडल की अलक झलक, कपोलन पर धाई [1]
मनो मीन सरवर तजि, मकर मिलन आई ।
कुटिल भृकुटि तिलक भाल, चितवन में टौना ।
खंजन अरु मधुप मीन, भूले मृगछौना ।
सुंदर अति नासिका, सुग्रीव तीन रेखा ।
नटवर प्रभु भेष धरे, रूप अति विसेषा ।
अधर बिंब अरुन नैन, मधुर मंद हाँसी ।
दसन दमक दाड़िम दुति चमके चपलासी ।
छुद्र घंट किंकिनी, अनूप धुनि सोहाई ।
गिरधर के अंग अंग, मीराँ बलि जाई ।।9।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छाई
  2. नंद नंदन = श्रीकृष्ण। मोरन की चन्द्रकला = मोर नामक पक्षियों की पूंछ पर बनी हुई नीली सुंदर चित्तियों में झलकने वाले सुंदर चमकीले मंडल को चन्द्रिका वा कन्द्रकला कहते हैं। कुंडल...झलक = कुंडल पर पड़ा हुआ छल्लेदार बालों का प्रतिबिंब। मकर = मगर। कुंडल...मिलन आई = मकराकृत कुंडलों की प्रभा कपोलों पर फैली हुई है और उन ( कुंडल ) के ऊपर पड़े हुए अलकों के प्रतिबिंब उस ( प्रभा ) के अंतर्गत ऐसे जान पड़ते हैं मानो मीनों का समूह अपने सरोवर को त्याग कर मगरों से मिलने के लिए पहुँचा है। ( देखो - ‘कुंडल झलक कपोल पर, राजति नाना भाँति’ - नागरीदास। ) टौना = जादू। खंजन छौना = जिसके सामने खंजरीट भ्रमर, मीन और मृगशावक सभी हार मान जाते हैं। नटवर...घरे = नटों के समान काछनी काछे हुए हैं। विंब = विंबा फल के समान लाल। मंद = हलकी। मंद हाँसी = मुसक्यान। दमक = आभा, चमक। दाडि़मदुति = अनार की द्युति वा कांति। चपला = बिजली छुद घंट किंकिनी = घुँघरूदार करधनी। ( देखो - ‘छुद्र घंटिका कटितट सोभित’ - पद 3 में )। अनूप = अनुपम, अनोखी।
    विशेष - 'कुंडल...मिलन आई' में उत्प्रेक्षालंकार 'कुटिल...मृगछौना' में प्रतिपालंकर एवं 'दसन... चपला सी' में उपमालंकार के उदाहरण देखे जा सकते हैं।

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