जब मै इहाँ तै जु गयी।
तब ब्रजराज सकल गोपी जन, आगै होइ लयो।।
उतरे जाइ नंद बाबा के, सबही सोध लह्यौ।
मेरी सौ मोसौ साँची कहि मैया कहा कह्यौ ?
बारंबार कुसल पूछी मोहि, लै लै तुम्हरौ नाम।
ज्यौ जल तृषा बढ़ी चातक चित, कृष्न कृष्न बलराम।।
सुंदर परम विचित्र मनोहर, यह मुरली दै घाली।
लई उठाइ सुख मानि ‘सूर’ प्रभु, प्रीति आनि उर साली।।4098।।