जब दूती यह बचन कह्यौ।
तब जाने हरि द्वारै ठाढे, उर उमँग्यौ रिस नही रह्यौ।।
काहे कौ हरि द्वार खरे है किनि राख्यौ कहि जीभ गरै।
मौन गहौ मैं ही कहि आऊँ, तू काहे कौ रिसनि जरै।।
चतुर दूतिका जानि लई जिय, अब बोली गयौ मान सबै।
'सूर' स्याम पै आतुर आई कहति आन की आन फबै।।2569।।