अनमिलती बातैं कहति, तातैं सुनियत नाहिं।
कहँ मोहन कहँ तू रहै, कबहिं गही तेरी बाहिं।।
साँची सब मैं कहति, झूठ नहिं कहिहौं तुमसौं।
सुत की राखति कानि, बिलग मानति हौ हमसौं।।
कुंजनि मैं क्रीड़ा करै, मनु बाही कौ राज।
संक सकुच नहिं मानई, रहत भयौ सिरताज।।
ऐसी बातैं कहति, मनहुँ हरि बरष बीस कौ।
दुसह सही नहिं जाइ, नैंकु डर करहु ईस कौ।।
धनि धनि तुम यह कहति हौ, मोकौं आवै लाज।
माखन माँगत रोइ तिहिं, दोष देतिं बिनु काज।।
हरि जानत है मंत्र जंत्र, सीख्यौ कहुँ टौना।
बन मैं तरुन कन्हाइ, घरहिं आवत ह्वै छौना।।
एक दिवस किन देखहू, अंतर रहौ छपाइ।
दस कौ है धौं बीस कौ, नैननि देखौ जाइ।।
जाहु चली, घर आपु, नैन भरि हम देख्यौ है।
तीस, बीस, दस बरष, एक एक दिन लेख्यौ है।।