जब कर तैं गिरि धरयौ उतारि।
स्याम कह्यौ बहुरौ गिरि पूजहु, ब्रज-जन लिये उबारि।।
यह सुनतहिं मन हरष बढ़ायौ, कियौ पकवान सँवारि।
बहु मिष्ठामन्न, बहुत बिधि भोजन, बहु ब्यंजन अनुहारि।।
परसि धरयौ गोबरधन आगैं जेंवत अति रुचि भारि।
सूर स्याम गिरिधर बर माँगतिं, रबि सौं घोष-कुमारि।।956।।