जब कर तैं गिरि धरयौ उतारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सोरठ


जब कर तैं गिरि धरयौ उतारि।
स्याम कह्यौ बहुरौ गिरि पूजहु, ब्रज-जन लिये उबारि।।
यह सुनतहिं मन हरष बढ़ायौ, कियौ पकवान सँवारि।
बहु मिष्ठामन्न, बहुत बिधि भोजन, बहु ब्यंजन अनुहारि।।
परसि धरयौ गोबरधन आगैं जेंवत अति रुचि भारि।
सूर स्याम गिरिधर बर माँगतिं, रबि सौं घोष-कुमारि।।956।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः