जबही स्याम कही यह बानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


जबही स्याम कही यह बानी। सो सुनि कै जुबती बिलखानी।।
मल्लनि कह्यौ हमहिं तुम देखौ। अपनौ बल, अपनौ तनु पेखौ।।
चितयै मल्ल नदसुत कोधा। काल रूप व्रज्रागी जोधा।।
भुजा ऐठि रज अग चढ़ायौ। गॅास भरे हरि ऊपिर आयौ।।
स्याम सहज पीताबर बाँधे। हलधर निरखत लोचन आधे।।
तब चानूर कृष्णा पर धायौ। भुज भुज जोरि अग बल पायौ।।
प्रथम भए कोमल तन ताकौ। सिथिल रूप मन मेलत बाकौ।।
तब चानूर गर्व मन लीन्हौ। दुर्ग प्रहार कृष्न पर कीन्हौ।।
फूलहु तै अति सम करि मान्यौ। तेहि अपनै जिय मारयौ जान्यौ।।
हरष्यौ मल्ल मारि भयौ न्यारौ। कहन लग्यौ मुख अहौ विचारौ।।
हँसत स्याम जब देख्यौ ठाढ़ौ। सोच परयौ तब प्राननि गाढ़ौ।।
फिरि फिरि कहि हरि मल्ल हँकारयौ। मनहुँ गुफा तै सिह पुकारयौ।।
हाँक सुनत सब कौड़ भुलानी। थरथराइ चानूर सकानौ।।
'सूर' स्याम महिमा तब जान्यौ। निहचै मृत्यु आपनी मान्यौ।।3070।।

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