जबहि बेनुधुनि साँमरै बृंदावन लाई।
मोही तिया जाति जमुनाजल सुधि तनु की बिसराई।।
सुरभी तृन ग़हि रही मुखनि मैं पंछी रहे चुपाई।
कालिंदी परबाह थकित भयौ गति निज पवन भुलाई।।
मुनि कौ ध्यान छूटि गयौ तबही जै जै जदुराई।
'सूरदास' रबिबाजि चलत नहिं तातै रथ बिलमाई।। 35 ।।