जबसे सुना सुधामय सुन्दर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग दरबारी - तीन ताल


जबसे सुना सुधामय सुन्दर ’श्याम’ नाम अतिशय सुख-धाम।
हु‌ए मुग्ध मन-बुद्धि-प्राण सब चलने लगा नाम अविराम॥
नाम-माधुरी ने प्राणोंमें कर दी जाग्रत दर्शन-प्यास।
हु‌आ चित्त उत्कण्ठित आकुल चला सुतप्त दीर्घ निश्वास॥
स्नेहमयी शुचि सखी विशाखा देख राधिका को बेहाल।
चित्रकला-निपुणा, अङ्किकत कर ला‌ई श्याम-चित्र तत्काल॥
निरख चित्र अति मधुर मनोहर नख-शिख रूप परम रमणीय।
मानो मिले मदन-मद-हर मन-मोहन प्राणकान्त कमनीय॥
हु‌ई हर्षविह्वल विस्मित-मन करने लगी गँभीर विचार।
नहीं त्रिकाल-तीन लोकोंमें ऐसा दिव्य रूप रस-सार॥
जिसके क्षुद्र एक कणको ले सुमनों का सारा संसार।
सबको सुख दे रहा अमित, कर रूप-माधुरी का विस्तार॥
जिसके कोटि अंशका लेकर एक अंश शुचि नीलाकाश।
विश्व-विमोहित करता विधु-मुख भरकर रूप-सुधामय हास॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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