जननी बलि जाइ हालरु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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रागि‍नी श्रीहठी



जननी बलि जाइ हालरु हालरौ गोपाल।
दधिहिं बिलोइ सदमाखन राख्यौ, मिश्री सानि चटावै नँदलाल।
कंचन खंभ, मयारि, मरुवा-डाडी़, खचि हीरा बिच लाल-प्रवाल।
रेसम बनाइ नव रतन पालनौ, लटकत बहुत पिरोजा-लाल।
मातिनि झालरि नाना भाँति खिलौना, रचे बिस्वकर्मा सुतहार।
देखि देखि किलकत दँतियाँ द्वै राजत क्रीड़त बिबिध बिहार।
कठुला कंठ बज्र केहरि-नख, मसि बिंदुका सु मृग-मद भाल।
देखत देत असीस नारि-नर, चिरजीवौ जसुदा तेरौ लाल।
सुर नर मुनि कौतूहल फूले, झूलत देखत नंद कुमार।
हरषत सूर सुमन बरषत नभ, धुनि छाई है जै-जैकार।।84।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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