जद्यपि राधिका हरि संग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


जद्यपि राधिका हरि संग।
हाव भाव, कटाच्छ लोचन, करत नाना रंग।।
हृदय व्याकुल, धीर नाही, बदन कमल विलास।
तृपा मैं जल नाम सुनि ज्यौ, अधिक अधिकहि प्यास।।
स्याम रूप अपार उत, इत लोभ पुट विस्तार।
'सूर' मिति नहि लहत कोऊ, दुहुँनि बल अधिकार।।2122।।

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