जदुपति जल क्रीड़त जुवति संग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बसंती


जदुपति जल क्रीड़त जुवति संग।
सागर सकुचित तजियत तरंग।।
षोडस सहस्र सत अष्ट नारि।
तिन मै अति सोभित श्री मुरारि।।
उड़गन समेत ससि सिंधु वारि।
मनु पुनि आयौ चित हित बिचारि।।
मृगमद मलयज केसरि कपूर।
कुमकुमा कलित कृत अगरु चूर।।
छूटत कटाच्छ सर भ्रकुटिपूर।
मनु धनुषनिपुन, संग्राम सूर।।
चंचल मलयानिल चलत सीर।
अरु जलद बृंद छित भित समीर।।
बर बदन निकट कच चुबत नीर।
मकरंद निमित मधुकर अधीर।।
जहँ नारदादि मुनि करत गान।
जग पूरत हरि-जस-सुचि-बितान।।
सुर सुमन सुघन बरषत बिमान।
जै जै 'सूरज' प्रभु सुखनिधान।।2912।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः