छोटी-छोटी गोड़ियाँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ललित



छोटी-छोटी गोड़ियाँ, अँगुरियाँ छबीली छोटी,
नख ज्योती, मोती मानौ कमल दलनि पर।
ललित आँगन खेलै, ठुमुकि-ठुमुकि डोलै,
झुनुक झुनुक बोलै पैजनी मृदु मुखर।
किंकिनी कलित कटि हाटक रतन जटि,
मृदु कर-कमलनि पहुँची रुचिर बर।
पियरी पिछौरी झीनी, और उपमा न भीनी,
बालक दामिनि मानौ ओढ़ै बारौ बारि-धर।
उर बघनहां, कंठ कठुला, झँडूले बार,
बेनी लटकन मसि-बुंदा मुनि-मनहर।
अँजन रंजित नैन, चितवनि चित चोरै,
मुख-सोभा पर वारौं अमित असम-सर।
चुटुकी बजावति नचावति जसोदा रानी,
बाल-केलि गावति मल्हावति सुप्रेम भर।
किलकि-किलकि हँसैं, द्वै-द्वै दँतुरियाँ लसैं,
सूरदास मन बसैं तोतरे बचन बर।।151।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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