छाँड़ि देहु सुरपति की पूजा।
कान्ह कह्यौ गिरि गोवर्धन तैं और देव नहिं दूजा।।
गोपनि सत्य मानि यह लीन्ही, बड़ौ देव गिरिराज।
मोहिं छाँड़ि ये परबत पूजत, गरब कियौ सुरराज।।
पर्वत सहित धोइ ब्रज डारौं, देउँ समुद्र बहाइ।
मेरी बलि औरहिं लै अरपत, इनकी करौं सजाइ।।
राखौं नहीं इन्हैं भूतल पर, गोकुल देउं बड़ाइ।
सूरदास-प्रभु जाकौ रच्छक, सँगहिं संग रहाइ।।822।।