चोरी करत कान्ह धरि पाएँ।
निसि–वासर मोहि बहुत सतायौ, अब हरि हाथहिं आए।
माखन–दधि मैरौ सब खायौ, बहुत अचगारी कीन्ही।
अब तौ घात परे हौ लालन, तुम्हैं भलै मैं चीन्ही।
दोउ भुज पकरि, कह्यौ कहँ जैहो, माखन लेउँ मँगाइ।
तेरी सौं मैं नैंकु न खायौ, सखा गए सब खाइ।
मुख तन चितै, बिहँसि हरि दीन्हौ, रिस तब गई बुझाइ।
लियौ स्याम उर लाइ ग्वालिनी, सूरदास बलि जाइ।।297।।