श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी59. भक्तों को भगवान के दर्शन
प्रभु ने कुछ रोष के स्वर में गम्भीर-भाव से कहा- ‘मुकुन्द के ऊपर कृपा नहीं हो सकती। ये अपने को वैसे तो भक्त करके प्रसिद्ध करते हैं, किंतु बातें सदा तार्किकों-सी किया करते हैं। वैष्णव-लीलाओं को पण्डित-समाज में बैठकर बाजीगर का खेल बताते हैं और अपने को बड़ा भारी विद्वान और ज्ञानी समझते हैं। इन्हें भगवान के दर्शन न हो सकेंगे?’ रोते-रोते मुकुन्द ने श्रीवास के द्वारा पुछवाया, हम कभी भी भगवत-कृपा के अधिकारी न बन सकेंगे? इनके कहने पर श्रीवास पण्डित ने पूछा- ‘प्रभो! मुकुन्द जिज्ञासा कर रहे हैं कि हम कभी भगवत-कृपा के अधिकारी बन भी सकेंगे?’ प्रभु ने कुछ उपेक्षा-भाव से उत्तर देते हुए कहा- ‘हाँ, कोटि जन्मों के बाद अधिकारी बन सकते हो।’ इतना सुनते ही मुकुन्द आनन्द में विभोर होकर नृत्य करने लगे और प्रेम में पुलकित होकर गद्गदकण्ठ से यह कहते हुए कि ‘कभी होंगे तो सही, कभी होंगे तो सही’ नृत्य करने लगे। वे स्वयं ही कहते जाते, कोटि जन्मों की क्या बात है। थोड़े ही काल में कोटि जन्म बीत जायँगे। बहुत काल में भी बीतें, तो भी तो अन्त में हमें प्रभु-कृपा प्राप्त हो सकेगी। बस, भगवत-कृपा प्राप्त होनी चाहिये, फिर चाहे वह कभी क्यों न प्राप्त हो? इनकी ऐसी आनन्द-दशा को देखकर सभी भक्तों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वे इनकी ऐसी दृढ़ निष्ठा को देखकर अवाक रह गये। अन्त में प्रभु ने इन्हें प्रेमालिंगन प्रदान करते हुए कहा- ‘मुकुन्द! तुमने अपनी इस अविचल निष्ठा से मुझे खरीद लिया। सचमुच तुम परम वैष्णव हो, तुम्हारी ऐसी दृढ़ निष्ठा के कारण मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। तुम भगवत-कृपा के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी हो। तुमने ऐसी बात कहकर मेरे आनन्द को और लक्षों गुणा बढ़ा दिया। मुकुन्द! तुम्हारे-जैसा धैर्य, तुम्हारी-जैसी उच्च निष्ठा साधारण लोगों में होनी अत्यन्त ही कठिन है। तुम भगवत-कृपा के अधिकारी बन गये। मेरे तेजोमय रूप के दर्शन करो। यह कहकर प्रभु ने उन्हें अपने तेजोमय रूप के दर्शन कराये और मुकुन्द उस अलौकिक रूप के दर्शन से मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर सभी भक्तों ने अपनी-अपनी भावना के अनुसार श्यामवर्ण, मुरलीमनोहर, सीता-राम, राधा-कृष्ण, देवी-देवता तथा अन्य भगवत-रूपों के प्रभु के शरीर में दर्शन किये। |